martedì 16 ottobre 2018

中国银行业贷款审批考虑环保新政

本周,由G20财长和央行行长会议批准成立的绿色金融研究小组第二次会议在英国伦敦举行。

会上,中国工商银行(全球总资产规模最大的银行)介绍了他们的“环境压力测试”结果。该测试主要面向工行的高耗能贷款客户,测量向其提供贷款存在的风险。

此项研究已经对包括工商银行客户在内的一些高污染企业产生了重大影响。

近期发布的“十三五”规划中提出了比以往更有力的环保措施,包括在2015年的基础上分别将能源强度(单位 的能耗量)和碳排放强度降低15%和18%,并且对工厂颗粒物排放设定了限制。(
单击此处查看环境目标列表)

在这种情况下,工商银行模拟了新环保政策可能对热能和水泥生产客户的财务业绩可能造成的影响。

研究结果显示,未来2到5年间,该行业内企业的信誉度可能会出现显著下降,中小型企业受影响尤为明显。

因此,工商银行开始重新审视其向特定企业提供贷款的政策,并专注思考如何为客户提供资助,帮助他们降低对环境的影响,从而减少此类风险。


剑桥大学可持续发展领导研究所近期发布的一项行业研究显示,有这种想法的远不止工商银行一家。

全球银行、投资机构以及保险公司都在开发通过各种复杂的方法,将环境威胁对财政造成的影响、以及以政策和商业为主导的应对工作纳入决策考量的范围。

下个月,由十位顶级投资机构组成的投资领导小组,将公布一套用于模拟不同的碳排放和能源消耗调节方案对企业利润造成影响的方法,目的是更好地对这些企业的资产价值进行分析。

越来越多的人开始重视这些问题,全球各地的监管机构也在密切关注着相关的动态。目前,中国人民银行和英格兰银行分别代表各自国家政府,共同主持G20绿色金融研究小组。

他们的目标是:从机制和市场层面找出金融系统中影响私人资本进入绿色投资领域的障碍。

英格兰银行行长、金融稳定委员会主席马克·卡尼明确表示,这一议程的核心问题在于:避免在向绿色经济的“无序”转型过程中出现可能危害金融稳定的风险。
这一点关系到了所有类型的企业。随着相关知识和方法的发展完善,金融机构能够将环境风险纳入投资决策考量的范围。想要借贷、维持其股权价值或者购买保险的企业会逐渐发现,环境因素管理已经成为决定他们资本成本、甚至是获取融资的关键因素。

美国上世纪30年代多个地区爆发沙尘暴的事件说明,环境条件的变化可能导致经济陷入低迷,使银行贷款蒙受重大损失。

更近一些的例子是2003年欧洲遭热浪袭击,农业部门为此损失高达150亿美元,法国电力价格更是飙升至原本的1300%。去年,高度依赖水电的巴西遭遇80年一遇的旱灾。巴西人口最为密集的3个州的工农业均遭受重创,电力价格上涨70%。

虽然我们对环境变化的实际影响造成的风险有了更好的理解,但也必须认识到,应对这些风险的过程中可能带来的金融风险。例如,为履行去年12月在巴黎气候大会上许下的承诺,政府突然引入的公共政策。

投资组合面临的风险还来自于技术突破、颠覆性的商业模式创新(如分散式能源发电)等引发的新的市场反应,这些反应都在努力适应这种新的环境背景,力求发展壮大。

在一些市场中,人们还是很担心企业因无法妥善应对环境风险而造成的债务风险。随着风险规模的逐渐扩大,其发生的可能性越来越大,关联性也越来越密切,这对我们如何理解和管理它们构成了切实的挑战。

对于金融公司来说,好消息是,解决这些新风险,以及和机遇相关的不确定性和投资期所遇问题的新技术在不断涌现。

未来有很多种可能,它们各自造成的影响也具有不确定性。为了更好地理解这些影响,有人选择采用保险行业相对熟悉的情境分析技术。与此同时,各国政府也正在努力以现有的“压力测试”技术为基础,把那些看似发生概率低、但影响却极为重大的风险纳入目前的决策考量因素之中。

lunedì 8 ottobre 2018

यहां मुहर्रम में हिंदू मनाते हैं मातम

केश मामा मातम के जुलूस में ले जाने के लिए एक घोड़े को सजा रहे हैं. इस घोड़े को जुलूस में उस घोड़े के तौर पर दर्शाया जाएगा जिस पर चौदह सदी पहले हुई कर्बला की लड़ाई में पैगंबर मोहम्मद के नवासे हुसैन सवार थे.
मुहर्रम के मातम में ज़्यादातर शिया मुसलमान शरीक़ होते हैं. लेकिन पाकिस्तान के सिंध प्रांत का मिट्ठी शहर एक अपवाद है, जहां हिंदू भी मुहर्रम में हिस्सा लेते हैं.
अपने घोड़े पर चटख लाल कपड़ा बांधते हुए मुकेश मामा कहते हैं, "हम हुसैन से प्यार करते हैं. हमारे मन में उनके लिए बहुत श्रद्धा है. हुसैन सिर्फ मुसलमानों के नहीं थे. वह सबके लिए प्यार और मानवता का संदेश लेकर आए. हम हुसैन की शहादत का मातम मनाते हैं. जुलूस में शामिल होते हैं और मातम मनाने वालों को पानी वगैरह बांटते हैं."
सिंध प्रांत में मिट्ठी एक छोटी-सी जगह है. यह पाकिस्तान में इस्लाम की सूफ़ी धारा का गढ़ है.
मिट्ठी में हिंदू बहुसंख्यक हैं पर वे अल्पसंख्यक मुस्लिम पड़ोसियों के सभी रीति-रिवाज़ों में हिस्सा लेते हैं.
मुकेश के घर से क़रीब एक किलोमीटर दूर इमाम बरगाह मलूहक शाह के यहां लोग जुट रहे हैं. सूरज तेज़ चमक रहा है और ज़मीन तप रही है.
वहां अंदर प्रवेश करने से पहले उन सबने अपने जूते उतार दिए. एक कोने में सजा धजा ताज़िया (हुसैन की क़ब्र की प्रतिकृति) रखा है.
घाघरा पहने हुए दर्जनों हिंदू महिलाएं एक लंबे खंभे पर लगे लाल झंडे के सामने रुकती हैं और अपना सम्मान प्रदर्शित करती हैं. वे अगरबत्ती जलाकर ताज़िये तक जाती हैं और वहां कुछ देर ठहरकर प्रार्थना करती हैं.
कुछ देर बाद पास के एक कमरे में पांच पुरुषों का एक समूह हुसैन की मौत के ग़म में मर्सिया पढ़ना शुरू करता है. ईश्वर लाल इस समूह की अगुवाई कर रहे हैं.
ईश्वर एक संघर्षशील लोकगायक हैं. काली शलवार कमीज़ में गाते हुए वह एक हाथ से अपनी छाती पीटते हैं. उनकी आंखों में आंसू हैं.
उनके सामने बैठे क़रीब चालीस लोग उतनी ही श्रद्धा से उन्हें सुन रहे हैं.
ईश्वर कहते हैं कि इस पर हिंदुओं या मुसलमानों की ओर से कोई आपत्ति नहीं की जाती.
उनके मुताबिक, "यहां हिंदू शिया मस्जिदों में भी जाते हैं. वह भी काले कपड़े पहनकर. अगर कोई इसके ख़िलाफ़ कुछ बोलता है तो हम उस पर ध्यान नहीं देते."
मुहर्रम के दौरान मातम करने वालों के लिए नियाज़ या लंगर के तौर पर मुफ़्त भोजन की व्यवस्था रहती है. यह जिम्मा ज़्यादातर स्थानीय हिंदू दुकानदार संभालते हैं.
नौवें दिन सूरज डूबने के बाद, बड़ी संख्या में शिया और हिंदू मातमी अपने कंधों पर ताज़िया उठाते हैं और शहर में जुलूस निकालते हैं.
रोते-बिलखते हुए वे कर्बला की त्रासदी को याद करते हैं. हुसैन के समर्थकों की बहादुरी के गीत गाते हैं और उन कठिन हालात को याद करते हैं जिनसे हुसैन और उनके परिवार को गुज़रना पड़ा.
यह जुलूस सुबह तक जारी रहता है और फिर दरगाह क़ासिम शाह पर कुछ देर के लिए रुकता है. इस दरगाह की देखभाल करने वाले मोहनलाल सुबह से ही इस दरगाह की सफ़ाई में लगे थे ताकि शोक मनाने वालों का स्वागत कर सकें.
दर्जनों पुरुषों और बच्चों की एक टीम सब्ज़ियां काटने, बर्तन धोने और लकड़ी जलाने के काम में लगी है. मोहनलाल की अगुवाई में जुलूस में शामिल लोगों के लिए चावल और मटर बनाया गया है.
एक बड़ी देगची में सब्ज़ी चलाते हुए मोहनलाल कहते हैं, "इन्हें खिलाना सम्मान की बात है. बरसों से हम इस परंपरा का पालन कर रहे हैं."
"खाना बनाने का काम शाम तक चलेगा और हम पूरे दिन खाना खिलाएंगे. इस परंपरा का हमारे मन में बहुत सम्मान है."
इसके बाद जुलूस आगे बढ़ जाता है. इन मातमियों की ख़िदमत करने वाले मोहनलाल इकलौते नहीं हैं. रास्ते में कई हिंदू पुरुष और महिलाएं उनके लिए खाना-पीना उपलब्ध कराते रहते हैं.
शाम को यह जुलूस ख़त्म हो गया. सारे लोग एक बार फिर इमाम बरगाह मलूक शाह पर जमा हुए और यहां शोक मनाया गया.
आख़िरी परंपरा के साथ मोहर्रम का पाक महीना ख़त्म हो जाता है लेकिन यहां हिंदुओं-मुसलमानों के बीच प्रेम और सौहार्द साल भर इसी तरह जारी रहता है.
यह हमजोली फिर लौटेगी. मिट्ठी के मुसलमान भी हिंदुओं का अपनी मस्जिदों में न सिर्फ स्वागत करते हैं बल्कि हिंदू त्योहारों में भी हिस्सा लेते हैं.
सहिष्णुता और सह-अस्तित्व सूफी धारा के मुख्य स्तंभ हैं और यह धारा यहां हमेशा मज़बूत रही है..